Sunday, September 14, 2014

भविष्य में समाजिक व्यवस्था और मानव चेतना के पुनर्निर्माण का एक एतिहासिक प्रयोग - “महान सर्वहारा सांस्कृतिक क्रान्ति”

(सोवियत यूनियन के समाजवादी प्रयोग के अनुभवों का समाहार और असमानता से समानतावादी समाज की ओर ऐतिहासिक विकास का एक महान प्रयोग)
आज भले ही देश में निजी और सरकारी विद्यालयों के बीच अमीरों और गरीबों के बच्चों के लिए शिक्षा के स्तरों में जमीन और आसमान का अन्तर हो (!) लेकिन शिक्षा को बेहतर बनाने के लिये बड़े-बड़े नेताओं और शिक्षाविदों की ओर से कई बयान जारी किये जा रहे हैं। और भले ही देश के करोड़ों ग्रेजुएट नौजवान बेरोगारी या रोजगार की अनिश्तिता में जी रहे हैं हों (!) लेकिन छात्रों को उनकी जिम्मेदारियाँ याद दिलाने को लेकर अनेक नसीहतें दी जा रही हैं। इसी तरह की कई दिमागी उठा-पटक और राजनीतिक प्रेपोगेण्डा के बीच एक जनतन्त्र का नागरिक होने के कारण हमारी सबसे जरूरी जिम्मेदारी है कि हम सदियों से चले आ रहे अपने देश के सामंती-उपनिवेशीय और पिछड़ी पूँजीवादी सोच के दायरे से बाहर निकल कर नई दिशा में सोचें और उन गुलामी को बेड़ियों को दृढ़ता के साथ तोड़ने का प्रयास करें जो सम्राज्यवादी-पूँजीवादी उन्मुख मुनाफ़ा केन्द्रित नीतियों के माध्यम से जनता के ऊपर थोपी जा रही हैं।

सामाजिक प्रयोगों के इतिहास को पढ़ते हुये कुछ दिन पहले 1963-1964 में सोवियत यूनियन और समाजवादी चीनी के बीच चली महान बहस को पढ़ने का मौका मिला, और उसके संदर्भों को खोजते हुये 1966 से 1976 तक चीन में चली महान सर्वहारा सांस्क्रतिक क्रान्ति की घटनाओं और इतिहास के बारे में कुछ किताबों और बेवसाइटों से उस दौर में समाजवादी चीन में हुये प्रयोगों के बारे कई महत्वपूर्ण जानकारियाँ मिली (सभी स्रोतों की सूची लेख के अन्त में है)। इस दौर की ऐतिहासिक घटनाओं को पढ़कर हमारे सामने उस दौर का जो चित्र उभर कर सामने आता है उससे स्पष्ट रूप से यह समझ में आ जाता है कि समाज की आम जनता की अपार शक्ति को राजनीतिक रूप से  देश के निर्माण के लिये संगठित कर सर्वहारा सांस्क्रतिक क्रान्ति ने पूरी दुनिया के सामने यह सिद्ध किया कि जनता को अपनी मुक्ति के लिये किसी मशीहा की जरूरत नहीं होती।
इतिहास का यह दौर समाजवादी प्रयोगों का वह दौर था जब सोवियत यूनियन और चीन की बड़ी आबादी के साथ दुनिया की कुल आबादी का लगभग एक तिहाई हिस्सा समाजवादी व्यवस्था में सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और सांस्क्रतिक स्तरों पर नये-नये भविष्योन्मुख प्रयोग कर रहा था। इसी दौरान सोवियत यूनियन में 1956 में स्तालिन की मृत्यु के बाद पहले से पैदा हो चुके विशेषाधिकार प्राप्त पदाधिकारी और जन-प्रतिनिधि ख्रुश्चेव के नेतृत्व से सत्ता में अपनी पकड़ मजबूत करने में लगे थे और लगातार मज़दूर-विरोधी संशोधनवादी नीतियों को लागू कर रहे थे। इसी समय 1960 के दशक में समाजवादी चीन सोवियत यूनियन में हुई पूँजीवादी पुनर्स्थापना का विश्लेषण करते हुये वहाँ लागू की जा रहीं जन-विरोधी नीतियों की सैद्धान्तिक आलोचना भी कर रहा था जिसे महान बहस (1963-1964) और सर्वहारा सांस्क्रतिक क्रान्ति के दस्तावेजों में देखा जा सकता है।
इस दौर के (1960 से 1976 तक) चीन और रूस के हो रही घटनाओं के बारे में पूरी दुनिया के अखबारों में छापे जा रहे लेखों और विश्लेषणों को पढ़ें तो कई तथ्यों तथा प्रयोगों की तस्वीर उभर कर सामने आती है। उस दौर की चीनी पार्टी ने (जो उस समय मुख्यता वास्तविक अर्थों मे कम्युनिस्ट पार्टी थी) सोवियत यूनियन के समाजवादी समाज में पूँजीवादी पुनर्स्थापना की पूरी परिघटना का विश्लेषण करते हुये उसके कारणों की खोज की महान सर्वहारा सांस्क्रतिक क्रान्ति की भूमिका तैयार की। 1966 से लेकर 1976 में संशोधनवादियों द्वारा पूँजीवादी तख्तापलट तक चली महान सर्वहारा सांस्कृतिक क्रान्ति चीनी कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा संचालित एक राजनीतिक विचारधारात्मक क्रान्ति थी जिसके दौरान व्यापक मेहनतकश जनता की भागीदारी का आह्वान करते हुए बहसों, आलोचना और राजनीतिक लामबंदी के साथ राजनीतिक सत्ता को विकेन्द्रीकृत करके वर्ग-संघर्ष को संचालित करने के लिये विशेषाधिकार प्राप्त भ्रष्ट तत्वों के ऊपर जनता का सर्वतोमुखी अधिनायकत्व लागू करने का पहला प्रयोग किया गया। शहरों से लेकर गाँवों तक, स्कूल तथा विश्वविद्यालयों के छात्रों, फेक्टरियों के मज़दूरों और सहकारी समितियों, महिला संगठनों तथा किसानों को अपने विचार अभिव्यक्त करने तथा सत्ता में मौजूद भ्रष्ट पदाधिकारियों की आलोचना को प्रोत्साहित करने के लिये भारी संख्या में बड़े-बड़े शब्दों वाले पोस्टरों, दीवार पत्रिकाओं और दीवार पर नारे लिखकर अपने विचार प्रकट करने का आह्वान किया गाया।
10 वर्ष तक चली सांस्कृतिक क्रान्ति को दौरान चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व में मेहनतकश जनता की अपार शक्ति ने आर्थिक जगत, सामाजिक संस्थाओं, संस्कृति और व्यक्ति केन्द्रित पूँजीवादी मूल्यों के रूपान्तरण के साथ-साथ पूँजीवादी पुनर्स्थापना को रोकने के लिये सत्ता में मौजूद कम्युनिस्ट पार्टी के रूपान्तरण के लिये कई प्रयोग किये। इस दौरान भ्रष्टाचार और विशेषाधिकारों के हिमायती प्रतिनिधियों तथा पदाधिकारियों के विरुद्ध संघर्ष की शुरूवात करते हुये व्यापक जनसमूह का अह्वान किया गया और जनता के सामने नारा दिया गया कि बुर्जुआ "मुख्यालयों को तहस-नहस कर दो" और "मुठ्ठीभर पूँजीवादी पथगामियों को, जो समाज को वापस पूँजीवाद के चंगुल में धकेलना चाहते हैं, उखाड़ फेंको"।
इस नारे का महत्व किसी भी पिछड़े पूँजीवादी देश के सन्दर्भ में समझा जा सकता है और हर देश को इस दौर में समाज के रूपान्तरण के लिये किये गये प्रयोगों को करीब से निरीक्षण करने की ज़रूरत है। चीन में सदियों से कलाकार, बुद्धिजीवी और विशेषज्ञ शहरों में संकेन्द्रित हो चुके थे और समाज की आम मेहनतकश जनता से कटे हुये थे। सांस्कृतिक क्रान्ति का एक उद्धेश्य चीन में सदियों से मौजूद इस सांस्कृतिक केन्द्रीकरण को तोड़ना था जिसके तहत कलाकारों, डाक्टरों, तकनीशियनों, वैज्ञानिकों तथा सभी तरह के शिक्षित लोगों को मज़दूरों और किसानों के बीच जाने और क्रांतिकारी आन्दोलनों में शामिल होने का आह्वान किया गया। 
समाज में मौजूद मानसिक श्रम और शारीरिक श्रम के बीच, शहरों और देहातों के बीच, उद्योगों और कृषि के बीच और पुरुष और महिलाओं के बीच अन्तर को समाप्त करने के लिये सामाजिक स्तर पर बहसों को प्रोत्साहित किया जाता था। नये समाजवादी मूल्यों का प्रसार करने और पूँजीवादी व्यक्तिवादी मान्यताओं के विरुद्ध संघर्ष करने के लिये "जनता को सेवा करो" और देहात की ओर चलो का नारा दिया गया और बड़ी संख्या में नौजवानों और विशेषज्ञों ने इस आह्वान का स्वागत किया। शिक्षा में आमूलगामी परिवर्तन किये गये, पहले शिक्षा और योग्याता को दूसरों से आगे रहने और दूसरों की तुलना में अधिक सुविधा और विशेषाधिकार प्राप्त करने का एक माध्मय माना जाता था, सांस्कृतिक क्रान्ति के दौरान शिक्षा और योग्यता को सामूहिक हितों के लिये प्रोत्साहित किया गयाफैक्टरियों में एक व्यक्ति द्वारा प्रबंधन को समाप्त कर दिया गया और उसकी जगह मज़दूरों, तकनीशियनों और कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्यो की तीन-पक्षीय समितियों ने दैनिक प्रबंधन को अपने हाथ में ले लिया।
महान सर्वहारा क्रान्ति के दौरान व्यापक जनसमूह की भागीदारी को प्रोत्साहित करने तथा सही विचारों को परखने के लिये सार्वजनतिक बहसें आयोजित की जाती थीं, जिससे व्यक्तिवादी-पूँजीवादी विचारों को जनता के सामने रखकर उनपर वाद-विवाद किया जा सके। सांस्कृतिक क्रान्ति के दौरान भ्रष्टाचार और स्वार्थी विचारों को व्यापक सामाजिक स्तर पर हतोत्साहित करने के लिये यह सिद्धान्त अपनाया गया कि सहयोगियो के साथ एकता को सुदृढ करो, ढुलमुल तत्वों को अपने पक्ष में लो, और भ्रष्ट तथा विशेषाधिकारों को बढ़ावा देने वाले विचारों के हिमायती तत्वों को सार्वजनिक वाद-विवाद करते हुये जनता के सामने उजागर करो और बहुमत के सामने अलगाव (Isolation) में डाल दो। सांस्कृतिक क्रान्ति के दौरान विचारधारात्मक संघर्ष के महत्व को रेखांकित करते हुये कहा गया कि राजनीतिक सत्ता को उखाड़ फेंकने से पहले अनिवार्य रूप से इस बात की कोशिश की जाती है कि ऊपरी ढांचे और विचारधारा पर अपना प्रभुत्व कायम कर लिया जाय, ताकि लोकमत तैयार किया जा सके, तथा यह बात क्रांतिकारी वर्गों और प्रतिक्रियावादी वर्गों दोनों पर लागू होती है।
समाज के आर्थिक और वैचारिक रूपान्तरण के लिये व्यापक मेहनतकश जनता की इस तरह की राजनीतिक भागीदारी मानव इतिहास में इससे पहले कभी नहीं देखी गई थी। महान सर्वहारा सांस्कृतिक क्रान्ति में आर्थिक सम्बन्धों, राजनीतिक और सामाजिक संस्थाओं, और संस्क्रति, आदतों तथा विचारों को बदलने में इतिहास का सबसे मौलिक प्रयोग किया गया। महान सर्वहारा क्रान्ति ने 10 साल (1966 से 1976) तक चीन में पूँजीवाद की पुनर्स्थापना को रोके रखा और कई सामाजिक तथा संस्थागत बदलावों के साथ "जनता की सेवा करो" के आधार पर समाज को संगठित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई[References from - http://www.revcom.us]
1976 में चीनी सत्ता के संशोधनवादी तख्तापलट करने का बाद एक बार फिर सोवियत यूनियन के ख्रुश्चेवी संशोधनवाद के इतिहास को दोहराया गया और पूँजीवाद की पुनरस्थापना के लिये रास्ते खोल दिये गये चीन में संशोधनवादियों द्वारा तख्तापलट कर पूँजीवाद की पुनर्स्थापना के साथ सर्वहारा क्रान्तियों का पहला ऐतिहासिक चक्र पूरा हो चुका है, जिसका तर्कसंगत विश्लेषण व्यवहारिक और सैद्धान्तिक रूप से करने की जरूरत है। आज साम्राज्यवादी भूमण्डलीकरण के इस दौर में पूरी दुनिया के सोचने समझने वाले हर प्रगतिशील व्यक्ति के सामने एक चुनौती मौजूद है कि पूँजीवादी प्रचार तंत्र के माध्यम से लगातार किए जा रहे अनेक कूपमण्डूक, अवैज्ञानिक, नियतवादी, व्यक्तिवादी, अन्धविश्वासी तथा अतार्किक प्रचारों की सच्चाई को समझें। इसके लिये इतिहास में किये गये महान सर्वहारा क्रान्ति जैसे सामाजिक प्रयोगों को गहराई से समझने की ज़रूरत है ताकि आने वाले समय मे लोगों के बीच व्यक्तिवादी मुनाफाखोरी केन्द्रित मूल्यों की जगह जनवादी, समाजवादी तथा तार्किक विचारधारात्मक समझ को विकसित किया जा सके।
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श्रोत सूची:
1. Documents of Great Proletarian Cultural Revolutions and Great Leap Forward on http://www.revcom.us/
2. http://www.thisiscommunism.org/
3. The Truth About the Cultural Revolution, 
http://www.revcom.us/a/1251/communism_socialism_mao_china_facts.htm
4. महान बहस, पीपुल्स पब्लिसिंग हाउस, अन्तरराष्ट्रीय प्रकाशन
5. Documents of Great Debate (3 Volumes), International Publication
6. Political Economy (Sangai Political Text Book)
7. Khrushchev Lied by Grover Furr
8. "Stalin and the Struggle for Democratic Reform, Part 1 and 2” by Grover Furr
9. Documents of marxist.org

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